hindi poetry on life | सुबह सुबह है और रात रात

सुबह सुबह है और रात रात “hindi poetry on life”

एक

दो

तीन तारे

चार

पाँच

छ तारे

सात

आठ

नौ तारे

अनगिनत तारे

कौन-सा तारा खिसक पड़ा मिट्टी पर

बनकर घास का फूल

चौंका दिया एकाध शिल्पी को

कौन-सा तारा जुनो बनकर

ऊपर रहा वृहस्पति के प्रेम में

कौन पूछता है।

नीचे ऊपर या ऊपर नीचे

कोई फर्क नहीं पड़ता

पराक्रमी पराजित पृथ्वी के लिए।

मुँह के कुछ दाँत खो जाएँ

या टूट जाएँ

या कीड़े लगकर झड़ जाएँ

तो क्या उपवास में रहता है कोई ?

अविरत चलता रहता है खाना-पीना

मुँक के रास्ते से हो

या नाक के रास्ते से।

चारों ओर गुलाब का उपवन

चारों ओर नवदुर्गा के

नैवेद्य के लिए गाना-बजाना ।।

कूँथते-हाॐते बदन के बावजूद

साइकिल धकेलते हुए

चलना ही पड़ता है

स्कूल, कालेज या सचिवालय की

अंध गलियों में

सहसा दिख जाएँ तो

हाकिमों को

तपाक से साइकिल से उतर कर

‘सलाम’ ठोकना पड़ता है,

जीवन और जीविका के भय से।

क्योंकि

नई धरती, नई सुबह

नई-नई प्रीति की गजल

बनी नहीं है

अबतक हमारे लिए

गणतंत्र की नींव कहलाने वाले

इस अजीव भारतवर्ष में।

अच्छा हुआ या नजाने क्या हुआ

जाना तो था ही।

जा भी सकता था आसानी से

लेकिन गया तो नहीं !

कुछ शंख-सफेद चील

कुछ मटमैली चील

चक्कर लगा रही थीं आकाश में।

अच्छा हुआ

यह सिर्फ सोचने की बात है

शायद हो सकता था

तनिक और ज्यादा ?

या एक दम अच्छा हुआ

जो सब घटित हुआ।

कब किस भाँति सब घटित होता है

जो घटित होता है या घटने को होता है

सब कुछ लिखा हुआ होता है

काफी पहले से

पृष्ठ-पृष्ठ आकाश पर

आसमानी नीले कागज पर

सिर्फ तनिक मेहनत करके

चीलों के पंखों को हटाकर

दृश्यमान चित्रित अक्षरों को 

पढ़ सकना बाकी है।

पढ़ना हो नहीं पाता है;

इसलिए झर-झर झरती जाती है

विषाद की नदी।

अच्छा हुआ

मोबाइल का चार्ज खत्म हो गया।

फोन का टावर नाकाम हो गया

चाँद को ढाँप लिया मौसुमी बादलों ने।

बिजली की लाइन भी गुल हो गयी।

अँधेरे की लहर पर लहर

पछाड़ खाने लगी समूचे घर में।

सब कुछ तो ठीक था

सिर्फ एक मौखिक विस्फोरण से

बदल गयी प्रकृति।

नहीं, कुछ तो पूर्वापर प्रसंग रहा होगा।

बिल्कुल कुछ भी न होते हुए

यहाँ तक कि

कुछ भी पूर्वापर प्रसंग न होते हुए

क्या बिजली की आपूर्ति 

रूप हो सकती है ?

जरूर रही होगी कोर्स भूल-चूक

जिसका पता फौरन नहीं चलता

अंधकार में टटोलता पड़ता है

पिछले आलोक को

रोशनी की विश्वास-भरी उँगली को।

जो मिलती नहीं दोबारा

साँझ की अँधियारी में।

लेकिन अच्छा हुआ।

पर यह नहीं कह सकते

कि बहुत ही अच्छा हुआ।

इतनी जल्दी ऐसी एक द्वन्द्वात्मक

असफलता के इलाके में पहुँच कर

राय देना या अभिमान भरा उपदेश देना

हो सकता है बिल्कुल ठीक नहीं होगा।

राय यदि एक तरफा हो गयी हो !

एक कोने की हो गयी हो

ऐशान् हो या नैत हो

हर कोने की कुछ न कुछ डिग्री तो है

परिमापक-स्केल में।

समय-समय पर वही कोने

हिंस्र हो उठते हैं

वस्तु में हो या वास्तु-विज्ञान में हो ।।

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